निर्मला शहर से दूर एक छोटा गावं में रहेने वाली लड़की है।।
उसका दिन उसके छोटे से घर में अपने मां के साथ शुरू होता ।उसकी मां हर रोज़ गावं के नजदीक रहेने वाली जंगल से लकड़ी लेके गावं के कुछ लोगों को देकर पैसे कमाए करती ।।और निर्मला अपने कुछ दोस्तों के साथ खेला करती।।उसके गांव के खारीब या गावं से शहर जाने के बीच रास्ते में एक पीपल के पेड़ पास खेला करती।।
निर्मला के साथ उसकी मां अकेले ही है।।उसका पिता निर्मला २ वर्ष की थी जबी निदान होगया था।।नार्मला की मां बी बीमार रह करती ।।बस ऐसा वैसा ज़िन्दगी गुज़रा होता।।निर्मला के गांव में स्कूल नहीं है।अगर उसे स्कूल जाना है।तो उसे शहर ही जाना।। निर्मला के मां के पास इतने पैसे बी नहीं ते।।और वह अपने बेटी को अपने पास ही रखना चाहती थी।।
ऐसे ही दिन गुज़रा ता गया।।उसकी मां बहुत बीमार होगाई।।घर चलाने के वास्ते निर्मला जंगल से लकडि लेके बेचा करती।।बस उसकी उमर ११ वर्ष की ही है।।हर रोज़ शाम बस काम पूरा होने के बाद कुछ देर पीपल के पेड़ के पास बैठा करती थी।। निर्मला के उमर पड़ने लिखने की थी।।खेल कूद की थी।।उसे पता बी नहीं था।उसकी ज़िन्दगी बेहेतर हो सकती।।
उसके दिल में कुछ अरमान भी नहीं थे।।उसे पीपल के पेड़ के आगे के ज़िन्दगी से वह अनजान थी।।
**आज भी कई ऐसे जगह है।।जहां लोग को पढ़ाई के अहमियत मालूम नहीं है।
पढ़ाई से और बी बेहेतार ज़िन्दगी गुजरी जा सकती
देश का विकास होगा।।
निर्मला में ऐसा कुछ हुनर होगा।।जो देश को और समाज को काम आ सकती ।।
पता नहीं ऐसे कितनी निर्मला है।।कहीं हम से हमारे समाज से दूर।।
उसका दिन उसके छोटे से घर में अपने मां के साथ शुरू होता ।उसकी मां हर रोज़ गावं के नजदीक रहेने वाली जंगल से लकड़ी लेके गावं के कुछ लोगों को देकर पैसे कमाए करती ।।और निर्मला अपने कुछ दोस्तों के साथ खेला करती।।उसके गांव के खारीब या गावं से शहर जाने के बीच रास्ते में एक पीपल के पेड़ पास खेला करती।।
निर्मला के साथ उसकी मां अकेले ही है।।उसका पिता निर्मला २ वर्ष की थी जबी निदान होगया था।।नार्मला की मां बी बीमार रह करती ।।बस ऐसा वैसा ज़िन्दगी गुज़रा होता।।निर्मला के गांव में स्कूल नहीं है।अगर उसे स्कूल जाना है।तो उसे शहर ही जाना।। निर्मला के मां के पास इतने पैसे बी नहीं ते।।और वह अपने बेटी को अपने पास ही रखना चाहती थी।।
ऐसे ही दिन गुज़रा ता गया।।उसकी मां बहुत बीमार होगाई।।घर चलाने के वास्ते निर्मला जंगल से लकडि लेके बेचा करती।।बस उसकी उमर ११ वर्ष की ही है।।हर रोज़ शाम बस काम पूरा होने के बाद कुछ देर पीपल के पेड़ के पास बैठा करती थी।। निर्मला के उमर पड़ने लिखने की थी।।खेल कूद की थी।।उसे पता बी नहीं था।उसकी ज़िन्दगी बेहेतर हो सकती।।
उसके दिल में कुछ अरमान भी नहीं थे।।उसे पीपल के पेड़ के आगे के ज़िन्दगी से वह अनजान थी।।
**आज भी कई ऐसे जगह है।।जहां लोग को पढ़ाई के अहमियत मालूम नहीं है।
पढ़ाई से और बी बेहेतार ज़िन्दगी गुजरी जा सकती
देश का विकास होगा।।
निर्मला में ऐसा कुछ हुनर होगा।।जो देश को और समाज को काम आ सकती ।।
पता नहीं ऐसे कितनी निर्मला है।।कहीं हम से हमारे समाज से दूर।।
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